तू है और ऐश है और अंजुमन-आराई है
मैं हूँ और रंज है और गोशा-ए-तन्हाई है
सच कहा है के ब-उम्मीद है दुनिया क़ाएम
दिल-ए-हसरत-ज़दा भी तेरा तमन्नाई है
दिल की फ़रीयाद जो सुनता हूँ तो रो देता हूँ
चोट कमबख़्त ने कुछ ऐसी ही तो खाई है
बे-नियाज़ी की अदाएँ वो दिखाते हैं बहुत
ख़ू-ए-तस्लीम मेरी उन को पसंद आई है
ज़ुल्फ़ बरहम मिज़ा बर्गश्ता जबीं चीन-आलूद
मेरी बिगड़ी हुई तक़दीर की बन आई है
अदब आमोज़ बला का है तग़ाफ़ुल उन का
शौक़-ए-पुर-हौसला ने ख़ूब सज़ा पाई है
कहे देता हूँ किसी और की जानिब तू न देख
क्या ये कुछ कम है के ‘वहशत’ तेरा सौदाई है