तुम आये, कनकाचल छाये,
ऐ नव-नव किसलय फैलाये।
शतशत वल्लरियाँ नत-मस्तक,
झुककर पुष्पाधर मुसकाये।

परिणय अगणन यौवन-उपवन,
संकुल फल के गुंजन भाये;
मधु के पावन सावन सरसे,
परसे जीवन-वन मुरझाये।

रवि-शशि-मण्डल, तारा-ग्रह-दल,
फिरते पल-पल दृग-दृग छाये,
मूर्छित गिरकर जो अनृत अकर,
सुषमा के वर सर लहराये।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *