तरह-तरह की मुसीबत और एक जाँ के लिये
कहाँ पे भेज दिया तूने इम्तहाँ के लिये

हर एक रास्ता मस्दूद  है बगैरे जुनूँ
खिरद कोहे गिराँ  अज्मे नौजवाँ  के लिये

अजीब चीज है किस्मत की ना रसाई भी
कदम लिये भी तो कमबख्त पासबाँ के लिये

वो साथ छोड़ के बैठें जो साथ चल न सकें
बलाए जाँ न बनें पूरे कारवाँ के लिये

हमारे नाम से सुर्खीए दास्ताँ न सही
हमारा खून तो हाजिर है दास्ताँ के लिये

कुयूदे इश्क  की मजबूरियाँ अरे तोबा
जबान रख के भी तरसा किये ज़बाँ के लिये

खता मुआफ इजाजत मिले तो कुछ पूछूँ
अकेले रात में निकले हो तुम कहाँ के लिये

मिरी नहीं मिरे सजदों की आबरू रख ले
कि मेरा सर नहीं औरों के आस्ताँ के लिये

’नजीर’ फासला-ए-उम्र अब तमाम हुआ
वहाँ की फिक्र करो आये हो जहाँ के लिये

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