इधर आ ऐ मेरे नादाँ तमाशाई इधर आ ।
नहीं हैं हममें कोई आले क़ैसर आले उसमानी
नहीं है गंज-ए कारूँ, तख़्ते जम, तख़्ते सुलेमान ।
न हमसे तुग़रल व संजर, न हममें ज़िल्ले सुब‌हानी
ख़ुदा सोया हुआ है, जल रही है शम्मे शैतानी ।
नहिं रखते हैं कुछ भी, नूरे इरफ़ानी तो रखते हैं
महल रखते नहीं हैं, जोरे तुग़यानी तो रखते हैं ।
इधर आ ऐ मेरे नादाँ तमाशाई इधर आ ।

By shayar

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