जो आजादी की मीरे कारवाँ है
यही जी हाँ यही उर्दू जबाँ है

वही मैं हूँ वही मेरी ज़बाँ है
तुम्हारा अहदो पैमाँ  अब कहाँ है

मुहब्बत इए मुकम्मल दास्ताँ है
अब अपना-अपना अंदाजे बयाँ हैं

जमाने की जबाँ क्यों चुप रहेगी
सुनो जो कुछ तुम्हारी दास्ताँ है

मिरे होते मिरी कश्ती डुबो दे
किसी तूफाँ में ये जुरअत कहाँ है

मुझे देखो, न देखो उम्र मेरी
वही मैं हूँ वही अज्मे जवाँ  है

कहाँ से लायेगा वो खुशगुमानी
जो अपनी जिन्दगी से बदगुमाँ  है

’नजीर’ अहमद है जिसका नाम नामी
सुना वो शायरे हिन्दोस्ताँ है

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