जुगनू मौसम का परदार तारा
जुगनू फ़ितरत का ठंडा शरारा
जुगनू उड़-उड़ के मशअल दिखाये
भटके राही को रस्ता बताये
सब्ज़ाज़ारों में इस से चरागाँ,
ज़ाफ़शाँ इससे रूए गुलिस्ताँ
था तो मेहमान बरसात भर का
नूर था गुलरूख़ों की नज़र का
रात बरसात की इससे रौशन
बन गये कैसे तुम इसके दुश्मन
अपनी मुट्ठी के अन्दर जकड़ के
बाग़ से लाये जुगनू पकड़ के
घर में चमका न उपवन का तारा
मर गया हाय जुगनू बेचारा
बेटे तुम जाने महफ़िल बनोगे
या बड़े होके क़ालित बनोगे
अब कभी ऐसी हरकत न करना
जानलेवा मुहब्बत न करना

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