सरापा जल्वए-मस्तूर है तस्वीर पत्थर की
मिरी नज़रों से कोई पूछ ले तौक़ीर पत्थर की
ज़माने में बहुत मक़बूल है तस्वीर पत्थर की
नज़र आती है मुझ को औज ओर तक़दीर पत्थर की
निगाहे-नारसा ही जब रहे महरूमे-नज़्जारा
बताये तो कोई इस में है क्या तक़सीर पत्थर की
फ़रेबे-नाज़ से बच कर निकलना ऐ दिले-नादां
दिलों में रखते हैं नाज़ुक बदन तासीर पत्थर की
उलझते हैं भला शैख़-ओ-बरहमन किस लिए बाहम
हरम हो दैर हो दोनों में है तस्वीर पत्थर की
सनम खाने को हम ने सर-ब-सर सूरत कदा पाया
इधर तस्वीर पत्थर की, उधर तस्वीर पत्थर की
मज़ा जब है ‘रतन’ जोशे-तलब की कामयाबी का
मुबारकबाद कह दे मुझ को हर तस्वीर पत्थर की।