गंगा का है लड़कपन गंगा की है जवानी
इतरा रही हैं लहरें शरमा रहा है पानी

दोहराए जा रही है बरसात की कहानी
बीते हुए ज़माने गुज़री हुई कहानी

रुक-रुक के चल रही है बरसात की कहानी
थम-थम के बढ़ रही है दरियाओं की रवानी

बादल बरस रहा है बिजली चमक रही है
खिलवाड़ कर रहे हैं आपस में आग पानी

जाओ ख़ुशी से लेकिन जाती हुई घटाओ
हर साल आ के भरना तुम साल भर का पानी

जैसे बजा रहा है उस पार कोई बंसी
सतरंगी सारी बाँधे नाचे है रुत सुहानी

पानी बरस रहा है निकलो ‘नज़ीर’ घर से
हम-तुम भी तो लें अपने हिस्से की ज़िन्दगानी ।

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