गँहकी हैं खास खास आवत है मेरे पास
नगदी ओ उधार सभको देती हूँ जुबान पै।
खाता ये खुला है दरबार ये खुली है
तव रूप भी भली है प्यारे आइए दुकान पै।
पान के मसाला हम जानत है आला
जरा खालो नृपलाला मैं भोराऊँ वीरा पान पै।
द्विज महेन्द्र रामचंद्र सौदा कुछ लीजे आज
मोहित हूँ प्यारे तेरी तोतरी जुबान पै।