खुद ही खुद लर फिदा हो गये हम
इश्क़ की इंतिहा हो गये हम
तूं न सजदों की उम्मीद रक्खो
आप अपने ख़ुदा हो गये हम
रहज़नी देख कर रहनुमा की
अपने ख़ुद रहनुमा हो गये हम
जिस क़दर बे-वफ़ा हो गये तुम
उस क़दर बेवफ़ा हो गये हम
आलमे-यास में रहते रहते
यास का आसरा हो गये हम
मिटते मिटते मिटे हैं यहां तक
सर बसर नक़्शे-पा हो गये हम
मुल्तफित कोई काफ़िर-अदा है
हासिले-इल्तिजा हो गये हम
ऐ ‘रतन’ मौत से पहले मर कर
एक नक़्शे-बक़ा हो गये हम।