खा के गुस्सा वो निकले हैं घर से
देखिये किस जगह तेग़ बरसे
उन के तीरे-नज़र ऐसे बरसे
आफ़रीं निकली मेरे जिगर से
सख़्त अफ़सोस है तेरा बंदा
आ के ख़ाली गया तेरे दर से
तय हुआ यूँ महब्बत का रास्ता
कुछ इधर से हुआ कुछ उधर से
उन के घर का पता हर क़दम पर
पूछ लेता हूँ हर हम-सफ़र से
ज़िन्दगी क्या है चलना सफ़र में
मौत क्या है पलटना सफ़र से
ऐ ‘रतन’ बीज नेकी का बो दो
कोई मतलब न रक्खो समर से।