ख़ुदा से हश्र में काफ़िर! तेरी फ़रियाद क्या करते?
अक़ीदत उम्र भर की दफ़अतन बरबाद क्या करते?

क़फ़स क्या, हमने बुनियादे-क़फ़स को भी हिला डाला।
तकल्लुफ़ बरबिनाये-फ़ितरते आज़ाद क्या करते॥

बहुत मुहताज रहकर लुत्फ़ उठाए उम्रेफ़ानी के।
ज़रा-सी ज़िन्दगी जी खोलकर बरबाद क्या करते॥

शबेग़म आहे-ज़ेरेलब में सब कुछ कह लिया उनसे।
ज़माने को सुनाने के लिए फ़रियाद क्या करते?

By shayar

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *