क्यों तेरे ग़म-ए-हिज्र में नमनाक हैं पलकें
क्यों याद तेरी आते ही तारे निकल आए
बरसात की इस रात में ऐ दोस्त तेरी याद
इक तेज़ छुरी है जो उतरती चली जाए
कुछ ऐसी भी गुज़री हैं तेरे हिज्र में रातें
दिल दर्द से ख़ाली हो मगर नींद न आए
शायर हैं फ़िराक़ आप बड़े पाए के लेकिन
रक्खा है अजब नाम, कि जो रास न आए