क्या कहूँ अपने चमन से मैं जुदा क्योंकर हुआ
और असीरे-हल्क़ा-ए-दामे-हवा क्योंकर हुआ

जाए हैरत है बुरा सारे ज़माने का हूँ मैं
मुझको यह ख़िल्लत शराफ़त का अता क्योंकर हुआ
 
कुछ दिखाने देखने का था तक़ाज़ा तूर पर
क्या ख़बर है तुझको ऐ दिल फ़ैसला क्योंकर हुआ

देखने वाले यहाँ भी देख लेते हैं तुझे
फिर ये वादा हश्र का सब्र-आज़मा क्योंकर हुआ

तूने देखा है कभी ऐ दीदा-ए-इबरत कि गुल
हो के पैदा ख़ाक से रगीं-क़बा क्योंकर हुआ

मौत का नुस्ख़ा अभी बाक़ी है ऐ दर्दे-फ़िराक़
चारागर दीवाना है मैं लादवा क्योंकर हुआ

पुरसशे-आमाल से मक़सद था रुस्वाई मेरी
वर्ना ज़ाहिर था सभी कुछ क्या हुआ क्योंकर हुआ

मेरे मिटने का तमाशा देखने की चीज़ थी
क्या बताऊँ मेरा उनका सामना क्योंकर हुआ

By shayar

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