कौन फिर तुझको बरेगा
तू न जब उस पथ मरेगा?

निखिल के शर शत्रु हनकर,
क्षत भले कर क्षत्र बनकर,
तू चला जबतक न तनकर,–
धर्म का ध्वज कर न लेगा।

देश के अवशेष के रण
शमन के प्रहरण दिया तन
तो हुआ तू शरणशारण,
विश्व तेरे यश भरेगा।

मिलेंगे जन अशंकित मन
खिलेंगे निश्शेष-चेतन,
विषद-वासों के विभूषण,
चरण के तल, तू तरेगा।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *