मैं हूँ यादे-दिलरुबा है शब की तन्हाई भी है
और चश्मे-मुंतज़िर जल्वों से टकराई भी है

कौन आ बैठा है पहलू में मिरे ऐ दर्दे-दिल
बेरुखी के रंग में कुछ चाराफरमाई भी है

चल तो दूँ ऐ शौक़ बज़्मे-यार की जानिब मगर
सोचता हूँ कुछ वहां मेरी पज़ीराई भी है

वो निगाहें कत्ल से भी बख्शती है ज़िन्दगी
आज समझा हूँ कि शफ्फाक़ी मसीहाई भी है

शाम से ऐ दिल तू उन के दर पे देता है सदा
ये बता कोई सदाए-बाज़-गश्त आई भी है

हम तो चलते हैं ज़माने की हवा के साथ साथ
दोस्ती साक़ी से वाइज़ से वाइज़ से शनासाई भी है

हज़रते-वाइज़ भला ये आप ही फरमाइए
बे पिये इरफ़ान की मस्ती कभी छाई भी है

आज उठ कर ही रहेंगे हुस्न के पर्दे ‘रतन’
आस्ताने-यार है मेरी जबीं-साई भी है।

By shayar

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