कोसिला सुमित्रा रानी करेली सगुनवाँ सें
कब अइहें रामजी भवनवाँ हो लाल।
ताहिरे समइए रामा एक सखी बोलली
कि आई गइले राम दुनू भइया हो लाल।
लंका जीति अइलें राम अवध नगरीया से
बाजेला आनंद बधइया हो लाल।
तबला सरंगी बाजे ढोल ओ सितार से
बड़ी नीक लागे सहनइया हो लाल।
चिहुँकी कोशिला रानी ठाढ़े अँगनवाँ से
कहाँ बारे राम जी ललनवाँ हो लाल।
कइसे के लंका जीति अइलें तपसिाय से
अबहीं तो छोटे दुनू भइया हो लाल।
छोटे-छोटे बहियाँ रामा उमिर लरिकइयाँ से
छोटी-छोटी तीरवा धेनुहिया हो लाल।
कहत महेन्दर भरि देखलीं नयनवाँ से
छूटि गइलें जमके दुअरियाहो लाल।

By shayar

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