(1)
खयाले-तामीर के असीरों,करो न तखरीब की बुराई,
बगौर देखो तो दुश्मनी के करीब ही दोस्ती मिलेगी।

(2)
खुश्क बातों में कहां ऐ शैख कैफे-जिन्दगी,
वह तो पीकर ही मिलेगा जो मजा पीने में है।

(3)
आने दो इल्तिफात में कुछ और भी कमी,
मानूस हो रहे हैं तुम्हारी जफा से हम।

(4)
‘अर्श’ पहले यह शिकायत थी खफा होता है वह,
अब यह शिकवा है कि वह जालिम खफा होता नहीं।

(5)
इस इन्तिहाए-तर्के-मुहब्बत8 के बावजूद,
हमने लिया है, नाम तुम्हारा कभी-कभी।

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