तेरे आने की महफ़िल ने जो कुछ आहट-सी पाई है,
हर इक ने साफ़ देखा शमअ की लौ थरथराई है.
तपाक और मुस्कराहट में भी आँसू थरथराते हैं,
निशाते-दीद भी चमका हुआ दर्दे-जुदाई है.
बहुत चंचल है अरबाबे-हवस की उँगलियाँ लेकिन,
उरूसे-ज़िन्दगी की भी नक़ाबे-रूख४ उठाई है.
ये मौजों के थपेड़े,ये उभरना बहरे-हस्ती में,
हुबाबे-ज़िन्दगी ये क्या हवा सर में समाई है?
सुकूते-बहरे-बर७ की खलवतों८ में खो गया हूँ जब,
उन्हीं मौकों पे कानों में तेरी आवाज़ आई है.
बहुत-कुछ यूँ तो था दिल में,मगर लब सी लिए मैंने,
अगर सुन लो तो आज इक बात मेरे दिल में आई है.
मोहब्बत दुश्मनी में क़ायम है रश्क का जज्बा,
अजब रुसवाइयाँ हैं ये अजब ये जग-हँसाई है.
मुझे बीमो-रज़ा की बहसे-लाहासिल में उलझाकर,
हयाते-बेकराँ दर-पर्दा क्या-क्या मुस्कराई है.
हमीं ने मौत को आँखों में आँखे डालकर देखा,
ये बेबाकी नज़र की ये मोहब्बत की ढिठाई है.
मेरे अशआर के मफहूम भी हैं पूछते मुझसे
बताता हूँ तो कह देते हैं ये तो खुद-सताई है.
हमारा झूठ इक चूमकार है बेदर्द दुनिया को,
हमारे झूठ से बदतर जमाने की सचाई है.