कुछ अनोखा वो मेरे नन्द का लाला निकला।
जिसके उल्फ़त का हर एक रूप निराला निकला॥
क्यों न लेते भला वो इसको बड़े शौक के साथ।
उनकी हमशक्ल मेरा दिल भी तो काला निकला॥
इक नज़र में लूटी कुछ ऐसी मेरे दिल की दुकान।
हर तरफ़ ख़्वाहिशें दुनिया का ऐसा दिवाला निकला॥
अपनी चितवन के निशानात जो देखे उसने।
मेरा हर दागे जिगर नाज से पाला निकला॥
श्यामसुन्दर की न हो नज़रे इनायत क्यों कर।
जो कि दृग ‘बिन्दु’ भरा दर्द का प्याला निकला॥

By shayar

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