ऐ रे दगाबाज छटा देखु रघुनंदन को
नाहक लगाते दोष त्रिभुवन के स्वामी में।
रसना तव गिरत नाहीं ईश्वर को चीन्हत नाहीं
टेढ़ी मेढ़ी बात काहे करत हो नदानी में।
धिक्-धिक् धिक्कार तोरी कुल को धिक्कार सदा
गिनती तिहारो होय दुष्ट पतित कामी में।
द्विज महेन्द्र मूरख वृथा ही तुम जनम लियो
डूब मरो उल्लू तुम चुल्लू भर पानी में।