ऐसी सहर कि जिसमें कोई जल्वागर न हो
वो रात का कफन हो हमारी सहर न हो
क्यूँ एक दिल की दूसरे दिल को खबर न हो
वो दर्दे-इश्क क्या जो इधर हो उधर न हो
हर शै हसीन होती है हुस्ने निगाह से
कुछ भी न हो हसी जो हुस्ने नजर न हो
आखिर ये क्या सितम है मेरे राजदार दिल
मेरे ही घर की बात मुझी को खबर न हो
इन्सानियत है जल्वानुमा जिस तरफ ’नजीर’
मैं तो उधर हूँ चाहे जमाना उधर न हो