ऐन राहत हैं क़फ़स की तीलियां मेरे लिए
क्यों न हो बे-सूद याद -ए-आशियाँ मेरे लिए

हर नफ़स द्रसे-फ़ना है हर नज़र शरहे-फ़ना
ज़िन्दगी है मौत ही की दास्तां मेरे लिए

ख़ौफ़ क्या मुझ को किसी के खंज़रे-ख़ू रेज़ का
मौत का आना है तब्दीले-मकां मेरे लिए

कुछ तो होना चाहिए मेरी बला नोशी का पास
क्या यही तलछट है ऐ पीरे-मुगां मेरे लिए

सर उठाने की ज़बीने-शौक़ को फ़ुर्सत नहीं
नक़्शे-पाए-यार है अब हर निशां मेरे लिए

ऐ ‘रतन’ जोशे-जुनूँ से अब मैं उस मंज़िल में हूँ
है जहां वहशत-कदा बागे-जिनां मेरे लिए।

By shayar

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