जमहूरियत

इस राज़ को इक मर्दे-फ़िरंगी ने किया फ़ाश
हरचंद कि दाना इसे खोला नही‍ करते

जमहूरियत इक तर्ज़े-हुकूमत है कि जिसमें
बन्दों को गिना करते है‍ तोला नहीं करते

By shayar

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