आ ही जाती है मगर फिर भी मेरे दर्द की याद.
गरचे है तर्के-मोहब्बत में भी आराम बहुत.
और भी काम है दुनियाँ में ग़में-उल्फत को.
उसकी याद अच्छी नहीं ऐ दिले-नाकाम बहुत.
ये भी साक़ी बस इक अंदाजे-सियहमस्ती थी.
कर चुके तौबा बहुत,तोड़ चुके जाम बहुत.

By shayar

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