आदाब का नज़राना लिए आया हूँ
तहज़ीब का परवाना लिए आया हूँ
अब जाम-ओ-सुबूं थाम लो पीने वालो
अशआर का मयखाना लियर आया हूँ।
दरअस्ल ये क़ुदरत का है सर बस्ता राज़
नाचीज़ ‘रतन’ को भी मिला है ऐजाज़
ऐजाज़ का ऐजाज़ हैं मेरे मुहसिन
या रब ये रहें मुमताज़ से भी मुमताज़।