आज क्यों तेरी वीणा मौन?
शिथिल शिथिल तन थकित हुए कर,
स्पन्दन भी भूला जाता उर,
मधुर कसक सा आज हृदय में
आन समाया कौन?
आज क्यों तेरी वीणा मौन?
झुकती आती पलकें निश्चल,
चित्रित निद्रित से तारक चल;
सोता पारावार दृगों में
भर भर लाया कौन?
आज क्यों तेरी वीणा मौन?
बाहर घन-तम; भीतर दुख-तम,
नभ में विद्युत तुझ में प्रियतम,
जीवन पावस-रात बनाने
सुधि बन छाया कौन?
आज क्यों तेरी वीणा मौन?