आंसू के टपकने का असर हो के रहेगा
बे घर का दिले-यार में घर हो के रहेगा
हर अश्के-ज़मीं-गीर गुहर हो के रहेगा
लबरेज़े-समर दीदए-तर हो के रहेगा
वादा है उधर को इधर जज़्बे-महब्बत
मुश्किल है वफ़ा होना मगर हो के रहेगा
वो तीर-ओ-सिनां ले के अगर निकले हैं घर से
आशिक़ भी इधर सीना सिपर हो के रहेगा
आयी है नया दर्द लिए याद किसी की
अब दर्दे-जिगर जुज़्वे-जिगर हो के रहेगा
ऐ राहरवे-ज़ीस्त न डर राहे-अजल से
इस राह गुज़र से तो गुज़र हो के रहेगा
ऐ मस्ते-इमारत ये तुझे भूल न जाये
ये नज़्मे-जहां ज़ेर-ओ-ज़बर हो के रहेगा
बच बच के चले ख़ाक से इंसान कहां तक
ख़ाकी है ‘रतन’ ख़ाक बसर हो के रहेगा।