अलि की गूँज चली द्रुम कुँजों।

मधु के फूटे अधर-अधर धर।
भरकर मुदे प्रथम गुंजित-स्वर
छाया के प्राणों के ऊपर,
पीली ज्वाल पुंज की पुंजों।

उल्टी-सीधी बात सँवरकर
काटे आये हाथ उतरकर,
बैठे साहस के आसन पर
भुज-भुज के गुण गाये गुंजों।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *