अरे निवासी अन्तरतर के
हृदय-खण्ड जीवन के लाल
त्रास और उपहास सभी में
रहा पुतलियाँ किये निहाल।

संकट में वह गोद, मोद कर
जहाँ टपकता धन्य रहा,
मार-मार में गिर न हठीले
निर्जन है, मैं वन्य रहा।

ठहर जरा तुझ से प्यारे के
चरण कमल धुल जाने दे
और जोर से सिसक सकूँ
वे मंजुल घड़ियाँ आने दे।

By shayar

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