अब क्या बताऊँ मैं तेरे मिलने से क्या मिला
इर्फ़ान-ए-ग़म हुआ मुझे, दिल का पता मिला
जब दूर तक न कोई फ़कीर-आश्ना मिला,
तेरा नियाज़-मन्द तेरे दर से जा मिला
मन्ज़िल मिली,मुराद मिली मुद्द’आ मिला,
सब कुछ मुझे मिला जो तेरा नक़्श-ए-पा मिला
या ज़ख़्म-ए-दिल को चीर के सीने से फेंक दे,
या ऐतराफ़ कर कि निशान-ए-वफ़ा मिला
“सीमाब” को शगुफ़्ता न देखा तमाम उम्र,
कमबख़्त जब मिला हमें कम-आश्ना मिला