सुनो ऐ जीने वालो! दहर में जीना ही पड़ता है
यहां ज़हराबे-ग़म इंसान को पीना ही पड़ता है
खुशी हो, ना-खुशी हो, फर्ते-ग़म हो, शादमानी हो
कोई पहलू भी हो हर हाल में जीना ही पड़ता है
हज़ारों वलवले उठते हैं दिल में वक़्ते-तन्हाई
मगर होटों को उन की बज़्म में सीना ही पड़ता है
इक ऐसा भी मक़ाम आता है दुनियाए-महब्बत में
लबों को अर्ज़-ए-मतलब पर यहां सीना ही पड़ता है
तअज़्ज़ुब है मिरे मरने पे क्यों हैरान है दुनिया
हर इक इंसान को जामे-फ़ना पीना ही पड़ता है
जिगर का खून हो या अश्के-ग़म या बादए-गुल गूं
पिलाए जो मुक़द्दर वो हमें पीना ही पड़ता है
‘रतन’ आसां नहीं है इस ज़मीं में फूलना फलना
यहां हर शेर पर ख़ूने-जिगर पीना ही पड़ता है।