राह में सर्व मिले
राह में शमशाद मिले
सब गिरफ़्तार-ए-चमन
शामे गुलमर्ग मिली
सुभ पहलगाम मिली
राह में मिलते रहे, लाला-ओ-नसरीन-ओ-समन
गुनगुनाते हुए फूलों के बदन मिलते रहे
दिल की अफ़सुर्दः कली
ऐसी वादी में भी आकर न खिली
दिल के ख़ुश होने का सामान
गुल-ओ-लाल न नसरीन-ओ-समन
झाड़ियाँ दर्द की
दुःख के जंगल
नद्दियाँ
जिनमें बहा करते हैं दिल के नासूर
कोह-ए-ग़म
नाग की मानिंद
सियह फन खोले
हर गुज़रगाह को खा जाते हैं
रात ही रात है, सन्नाटा ही सन्नाटा है ।
कोई साहिल भी नहीं
कोई किनारा भी नहीं
कोई जुगनू भी नहिं
कोई सितारा भी नहीं
मेरी इस वादिए फ़र्दा के, ओख़ुश पर तायर
ये अंधेरा ही तेरी राहगुज़र
इस फ़ज़ा में कोई दरवाज़ा न दहलीज़ न दर
तेरी परवाज़ ही बन जाती है सामाने सफ़र
दामन-ए-कोंह में कोई नज़र आई है
तेरे ख़्वाब की ज़र्रीन सहर ।