सखी री श्याम घटा मोहि भावे।
छाय रहत नभ मे चारो दिश श्याम रूप दरसावे।
चमकत बिजुरी मनो पीत पट बक पाँती वनमाल सुहावे।
गरजत मनो बजावत मुरली चारु प्रेम रस जल बरसावे।
मोर सरोज नचत मन मेरो हरषि हिडोल झुलावे।
छवि प्रीतम नन्दनन्द ध्यान धरि लोचन दोउ जुड़ावे।
सखी री श्याम घटा मोहि भावे।
अली री कारि घटा घिरि आई।
उमड़त ही घन बरसन लागे दादुर शोर मचाई।
बोलत कोकिल मोर पपीहा कामिनि अति दुख पाई।
पिअ प्रीतम बिन निन्द न आवत विरहा अधिक सताई।
ऐसे समय हरि सुधि नहिं लीनी कैसै प्राण बचाई।