फूल खिलते ही रहे, कलियाँ चटकती ही रहीं
दिल धड़क जाए तो हासिल ? आँख भर आई तो क्या ।
शाम सुलगाती चली आती है ज़ख़्मों के चिराग़
कोई जाम आया तो क्या, कोई घटा छाई तो क्या ।
काकुलें लहराईं, रातें महकीं, पैराहन उड़े
एक उनकी याद ऐसी थी, नहीं आई तो क्या ।
दूरियाँ बढ़ती भी हैं, घटती भी हैं, मिटती भी हैं
साअतें आईं, यही साअत नहीं आई तो क्या ।