उनके तो दिल से नक़्शे-कुदूरत भी मिट गया।
हम शाद हैं कि दिल में कुदूरत नहीं रही॥
ज़िन्दगी ख़ुद क्या ‘फ़ानी’ यह तो क्या कहिये मगर।
मौत कहते हैं जिसे वो ज़िन्दगी का होश है॥
न दिल के ज़्रर्फ़ को देखो तूर को देखो।
बला की धुन है तुम्हें बिजलियाँ गिराने की॥
कल तक जो तुम से कह न सका हाले-इज़्तराब।
मिलती है आज उसकी ख़बर इज़्तराब से॥
मुद्दआ़ है कि मुद्दआ़ न कहूँ।
पूछते हैं कि मुद्दआ़ क्या है?॥
दुश्मने-जाँ थे तो जाने-मुद्दआ़ क्यों हो गये?
तुम किसी की ज़िन्दगी का आसरा क्यों हो गये?
ज़िन्दगी यादे-दोस्त है यानी–
ज़िन्दगी है तो ग़म में गुज़रेगी॥