मय रहे, मीना रहे, ग़र्दिश में पैमाना रहे
मय रहे, मीना रहे, ग़र्दिश में पैमाना रहे मेरे साक़ी तू रहे, आबाद मयखाना रहे। हश्र भी तो हो चुका, रुख़ से नहीं हटती नक़ाब हद भी आख़िर कुछ है,…
मय रहे, मीना रहे, ग़र्दिश में पैमाना रहे मेरे साक़ी तू रहे, आबाद मयखाना रहे। हश्र भी तो हो चुका, रुख़ से नहीं हटती नक़ाब हद भी आख़िर कुछ है,…
सलामत मय-कदा या रब सलामत पीर-ए-मय-ख़ाना हरम में हूँ मिरी आँखों में है तस्वीर-ए-मय-ख़ाना तुझे जाना भी है जन्नत में ऐ वाइज़ जवाँ हो कर जो आया है तो देखे…
शराब-ए-नाब से साक़ी जो हम वज़ू करते हरम के लोग तवाफ़-ए-ख़ुम-ओ-सुबू करते वो मल के दस्त-ए-हिनाई दिल लहू करते हम आरज़ू तो हसीन ख़ून-ए-आरज़ू करते कलीम को न ग़श आता…
वो पूछते हैं शौक़ तुझे है विसाल का मुँह चूम लूँ जवाब तो ये है सवाल का सौ नाज़ से जो आए क़यामत तो कुछ नहीं अंदाज़ और है तिरी…
वो कौन है दुनिया में जिसे ग़म नहीं होता किस घर में ख़ुशी होती है मातम नहीं होता तुम जा के चमन में गुल-ओ-बुलबुल को तो देखो क्या लुत्फ़ तह-ए-चादर-ए-शबनम…
ये ज़ौक़-ए-अदब मस्त-ए-मय-ए-होष-रूबा का लग्जिश है क़लम को जो लिखा नाम ख़ुदा का मय-ख़ाने को नाकाम फिरा तूर से तो क्या नज़्ज़ारा रहा मौज-ए-मय-ए-होश-रूबा का जन्नत की ज़रा अहल-ए-जहन्नुम को…
ये काफ़िर बुत जिन्हें दावा है दुनिया में ख़ुदाई का मिलें महशर में मुझ आसी का सदक़ा किबरियाई का ये मुझ से सख़्त-जाँ पर शौक़ ख़ंजर आज़माई का ख़ुदा-हाफ़िज़ मिरे…
मुझ को लेना है तिरे रंग-ए-हिना का बोसा दस्त-ए-रंगी का मिले या कफ़-ए-पा का बोसा चूमता हाथ मैं साक़ी के अदब माने था ले लिया जाम-ए-मय होश-रूबा का बोसा बिजली…
मकाँ देखे मकीं देखे ला-मकाँ देखा कहाँ कहाँ तुझे ढूँढा कहाँ कहाँ देखा झुका झुका है तो हाँ गिर पडे़ मिरे सर पर यही न यास से था सू-ए-आसमाँ आसमाँ…
बाम पर आए कितनी शान से आज बढ़ गए आप आसमान से आज किस मज़े की हवा में मस्ती है कहीं बरसी है आसमान से आज मैं ने छेड़ा तो…
बन बन के वो आईना ज़रा देख रहे हैं आग़ाज-ए-जवानी की अदा देख रहे हैं बन बन के क़ज़ा खेल रही है मिरे सर पर वो आईने में अपनी अदा…
पी ली हम ने शराब पी ली थी आग मिसाल-ए-आब पी ली अच्छी पी ली ख़राब पी ली जैसी पाई शराब पी ली आदत सी है नशा है न अब…