ज़िन्दगी में क्या मुझे मिलती बलाओं से नजात।
ज़िन्दगी में क्या मुझे मिलती बलाओं से नजात। जो दुआएँ कीं, वो सब तेरी निगहबाँ हो गईं॥ कम न समझो दहर में सरमाय-ए-अरबाबे-ग़म। चार बूंदें आँसुओं की, बढ़के तूफ़ाँ हो…
ज़िन्दगी में क्या मुझे मिलती बलाओं से नजात। जो दुआएँ कीं, वो सब तेरी निगहबाँ हो गईं॥ कम न समझो दहर में सरमाय-ए-अरबाबे-ग़म। चार बूंदें आँसुओं की, बढ़के तूफ़ाँ हो…
नाज़ो-अदा की चोटें, सहना तो और शै है। ज़ख़्मों को देख लेता कोई, तो देखता मैं॥ बर्क़े जमाले-वहदत! तू ही मुझे बता दे। शोला तो दूर भड़का, फिर किसलिए जला…
मेरी दास्ताने-ग़म को, वो ग़लत समझ रहे हैं। कुछ उन्हीं की बात बनती अगर एतबार होता॥ दिले पारा-पारा तुझ को कोई यूँ तो दफ़्न करता। वो जिधर निगाह करते उधर…
सैंकड़ों नाले करूँ लेकिन नतीजा भी तो हो। याद दिलवाऊँ किसे जब कोई भूला भी तो हो॥ उनपै दावा क़त्ल का महशर में आसाँ है मगर। बावफ़ा का ख़ून है,…
महशर में कोई पूछनेवाला तो मिल गया। रहमत बड़ी है मुझ को गुनहगार देखकर॥ उन दोस्तों में वो न हों या रब! जो वक़्ते-दीद। बीमार हो गये रुख़े-बीमार देखकर॥
मेरी ज़बान उनके दहन में हो ऐ करीम! होना है फ़ैसला जो उन्हीं के बयान पर॥ ‘साक़िब’! जहाँ में इश्क़ की राहें हैं बेशुमार। हैरान अक़्ल है कि चलूँ किस…
आये हो वक़्ते-दफ़्न तो शाना हिला के जाओ। आँख उसकी लग गई है, जिसे इन्तेज़ार था॥ मैयत तो उठ गई वो न आये नहीं सही। ‘साक़िब’ किसी के दिल पै,…
क़ैद करता मुझको लेकिन जब गुज़र जाती बहार। क्या बिगड़ जाता ज़रा-सी देर में सैयाद का॥ चोट देकर आज़माते हो दिले-आशिक़ का सब्र। काम शीशे से नहीं लेता कोई फ़ौलाद…
इज़्ज़त से बज़्मे-गुल में रहा आशियाँ मेरा। तिनकों की क्या बिसात मगर नाम हो गया॥ इक मेरा आशियाँ है कि जलकर है बेनिशाँ। इक तूर है कि जब से जला…
मैं नहीं, लेकिन मेरा अफ़साना उनके दिल में है। जानता हूँ मैं कि किस रग में यह नश्तर रह गया॥ आशियाने के तनज़्ज़ुल से बहुत खुश हूँ कि वो, इस…
ज़मानेवालों को पहचानने दिया न कभी। बदल-बदल के लिबास अपने इनक़लाब आया॥ सिवाय यास न कुछ गुम्बदे-फ़लक से मिला। सदा भी दी तो पलटकर वही जवाब आया॥