परकीया
विनत दृष्टि हो बोली करुणा, आँखों में थे आँसू के घन, ‘क्या जाने क्या आप…
Read Moreस्वर्ण बालुका किसने बरसा दी रे जगती के मरुथल मे, सिकता पर स्वर्णांकित कर स्वर्गिक…
Read Moreछाया? वह लेटी है तरु-छाया में सन्ध्या-विहार को आया मैं। मृदु बाँह मोड़, उपधान किए,…
Read Moreमुझे असत् से ले जाओ हे सत्य ओर मुझे तमस से उठा, दिखाओ ज्योति छोर,…
Read Moreमंजरित आम्र-वन-छाया में हम प्रिये, मिले थे प्रथम बार, ऊपर हरीतिमा नभ गुंजित, नीचे चन्द्रातप…
Read Moreवह विजन चाँदनी की घाटी छाई मृदु वन-तरु-गन्ध जहाँ, नीबू-आड़ू के मुकुलों के मद से…
Read Moreखो गई स्वर्ग की स्वर्ण-किरण छू जग-जीवन का अन्धकार, मानस के सूने-से तम को दिशि-पल…
Read Moreसुन्दरता का आलोक-श्रोत है फूट पड़ा मेरे मन में, जिससे नव जीवन का प्रभात होगा…
Read Moreए मिट्टी के ढेले ऐ मिट्टी के ढेले अनजान! तू जड़ अथवा चेतना-प्राण? क्या जड़ता-चेतनता…
Read Moreजो दीन-हीन, पीड़ित, निर्बल, मैं हूँ उनका जीवन संबल! जो मोह-छिन्न, जग से विभक्त, वे…
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