तुम ज्योति प्रीति की रजत मेघ
भरती आभा स्मिति मानस में
चेतना रश्मि तुम बरसातीं
शत तड़ित अर्चि भर नस नस में!

तुम उषा तूलि की ज्वाला से
रँग देती जग के तम भ्रम को,
वह प्रतिभा, स्वर्णांकित करती
संसृति के जो विकास क्रम को!

तुम सृजन शक्ति जो ज्योति चरण धर
रजत बनाती रज कण को,
जड़ में जीवन, जीवन में मन
मन में सँवारती स्वर्मन को!

तुम जननि प्रीति की स्त्रोतस्विनि
तुम दिव्य चेतना दिव्य मना,
तुम स्वर्ण किरण की निर्झरिणी,
आभा देही आभा वसना!

मुख पर हिरण्यमन अवगुंठन
प्राणों का अर्पित तुमको मन
स्वीकृत हो तुम्हें स्पर्शमणि यह,
स्वर्णिम हों मेरे जीवन क्षण!

By shayar

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *