द्वाभा के एकाकी प्रेमी,
नीरव दिगन्त के शब्द मौन,
रवि के जाते, स्थल पर आते
कहते तुम तम से चमक–कौन?
सन्ध्या के सोने के नभ पर
तुम उज्ज्वल हीरक सदृश जड़े,
उदयाचल पर दीखते प्रात
अंगूठे के बल हुए खड़े!
अब सूनी दिशि औ’ श्रान्त वायु,
कुम्हलाई पंकज-कली सृष्टि;
तुम डाल विश्व पर करुण-प्रभा
अविराम कर रहे प्रेम-वृष्टि!
ओ छोटे शशि, चाँदी के उडु!
जब जब फैले तम का विनाश,
तुम दिव्य-दूत से उतर शीघ्र
बरसाओ निज स्वर्गिक प्रकाश!

रचनाकाल: मई’१९३५

By shayar

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *