स्वर्ण शिखर से चतुर्शृंग है उसके शिर पर
दो उसके शुभ शीर्ष सप्त रे ज्योति हरत वर!
तीन पाद पर खड़ा, मर्त्य इस जग में आकर
त्रिधा बद्ध वह वृषभ रँभाता है दिग्ध्वनि भर!
महादेव वह सत्य पुरुष औ’ प्रकृति शीर्ष द्वय
चतुर्शृंग सच्चिदानंद विज्ञान ज्योतिमय!
सप्त चेतनालोक, हस्त्र उसके निःसंशय,
महादेव वह सत्य ज्योति का वृष वह निश्वय!
सत् रज राम से त्रिधा बद्ध पद अन्न प्रान मन,
मर्त्य लोक में कर प्रवेश वह करता रंभण!
महादेव वह सत्य मुक्ति के लिए अनामय
फिर फिर हंभा रण करता जय, ज्योति वृषभ, जय!