जीवन का उल्लास,–
यह सिहर, सिहर,
यह लहर, लहर,
यह फूल-फूल करता विलास!
रे फैल-फैल फेनिल हिलोल
उठती हिलोल पर लोल-लोल;
शतयुग के शत बुद्बुद् विलीन
बनते पल-पल शत-शत नवीन;
जीवन का जलनिधि डोल-डोल,
कल-कल छल-छल करता किलोल!
डूबे दिशि-पल के ओर-छोर
महिमा अपार, सुखमा अछोर!
जग-जीवन का उल्लास,–
यह सिहर, सिहर,
यह लहर, लहर,
यह फूल-फूल करता विलास!
रचनाकाल: फ़रवरी’ १९३२