होऊंगा जब जरा बड़ा मैं। यों न रहूँगा कहीं खड़ा मैं।।
खोलूँगा मैं एक दुकान। उसमे होगा सब सामान।।
गेंदे गुड़ियाँ तीर तिपाई। मीठे मेवे और मिठाई ।।
खेलूँगा औ, खाऊँगा मैं। हरगिज नहीं अघाऊंगा मैं।।|
या होऊंगा सिर्फ हंसोड़। सारे कामों से मुहं मोड़।।|
मुँह में मलकर कागज काला। पहन घास पत्तों की माला।।
रस्ते में गिर जाऊँगा मैं। सब को खूब हसाऊँगा मैं।।
या हौऊंगा ठेकेदार। नये नये बनवा घर द्वार।।
उनमें पलंग बिछाऊँगा मैं। सोऊंगा सुख पाऊँगा मैं।।
या हौऊंगा मैं सरदार। लेकर तुपक ढाल तलवार।।
निकलूंगा घोड़े पर चढ़ कर। किसी फ़ौज के आगे बढ़कर।।
सम्मुख जिसको पाऊँगा मैं। उस पर तुपक चलाऊँगा मैं।।
पर जब थक जाऊँगा खूब। अवा बड़ी लगेगी ऊब।।
तब कैसे मन बहलाऊँगा? माँ की गोद कहाँ पाऊँगा।।

By shayar

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *