(1)
कोई उल्फत का दीवाना, कोई मतलब का दीवाना,
यह दुनिया सिर्फ दीवानों का घर मालूम होती है।
(2)
खुदा और नाखुदा मिलकर डुबो दें यह तो मुमकिन है,
मेरी वजहे-तबाही सिर्फ तूफां हो नहीं सकता।
(3)
छीन ली फ़िक्र-ए-निशेमन ने मेरी आजादियाँ,
जज्बा-ए-परवा महदूदे-गुलिस्ताँ हो गया।
(4)
जवानी ख्वाब की-सी बात है, दुनिया-ए-फानी में,
मगर यह बात किसको याद रहती है, जवानी मे।
(5)
तअज्जुब क्या लगी गर आग ‘सीमाब’ सीने में,
हजारों दिल में अंगारे भरे थे, लग गई होगी।
(6)
नहीं मिलते तो इक अदना शिकायत है न मिलने की,
मगर मिलकर, न मिलने की शिकायत और होती है।