अंगड़ाई भी वो लेने न पाए उठाके हाथ,
देखा जो मुझको तो छोड़ दिए मुस्करा के हाथ।
कासिद तेरे बयाँ से दिल ऐसा ठहर गया,
गोया किसी ने रख दिया सीने पे आके हाथ।
देना वो उसका सागर-ए-मय याद है निज़ाम,
मुँह फेर कर उधर को, इधर को बढ़ा के हाथ।
अंगड़ाई भी वो लेने न पाए उठाके हाथ,
देखा जो मुझको तो छोड़ दिए मुस्करा के हाथ।
कासिद तेरे बयाँ से दिल ऐसा ठहर गया,
गोया किसी ने रख दिया सीने पे आके हाथ।
देना वो उसका सागर-ए-मय याद है निज़ाम,
मुँह फेर कर उधर को, इधर को बढ़ा के हाथ।