एक अजीब मुकाम पे ले आये है जिंदगी की गर्दिशे
के अहसास ही नही होता के क्या अहसास होते है
गम में कोई चुभन नही होती
खुशी में  लबो पे हँसी नही होती
बस जरा सा गम इतना होता है
के क्यों तुझे गम मैं दर्द नही होता
क्या तुझे  मालूम नही के रुचि क्या क्या हुआ तेरे संग
कई बार चुटकियां मारकर खुद को खुद के होने का अहसास यकीन कराती हु
गुजरती हु उजड़ी हुई बस्तियों से और आंसुओ को पलको तक लाती हु
गुजर जमाना याद नही मुझको बस अधूरे ख्वाबो मैं जीती हु
कुछ पुराने कपड़ो को टाकी लगाकर सिती हु

नए जमाने के तौर तरीके समझने की चाह नही मुझको
पुराने धुंधले चश्मो से इस नई दुनिया को देखती हूं

गुजरते मौसमो की थपेड़े भीअब डरती नही मेरी झोपड़ी को
बून्द बून्द बरसती छत तले ही बेफिक्र सो जाती हूं
ऐसा नही के भूल गई हसाब कुछ , तुम जब भी याद आओ तो मुस्कराती हु
खिलते है नए फूल तो आंखों से उनको निहारती हु
रोज गीले पायदान धूप में जब सूखने डालती हु
तो तेरे कदमो के निशान उनपर उभरती हु
बस फर्क ये है के सर्दियों के नाम धूप भी जिस्म को गर्मी नही दे पाती
ना ही गर्मियों के तीखे सूरज अब कोई आग जला पाते है
आते जाते मौसमो मैं बस तेरा वजूद ढालती हु
याकी मानो अब भी बहारो का रास्ता देखती हूं
चाहे खुद को जिंदा नही मानती हूं

By shayar

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