जीवन के इस शून्य सदन में
जलता है यौवन-प्रदीप; हँसता तारा एकान्त गगन में।
जीवन के इस शून्य सदन में।

पल्लव रहा शुष्क तरु पर हिल,
मरु में फूल चमकता झिलमिल,
ऊषा की मुस्कान नहीं, यह संध्या विहँस रही उपवन में।
जीवन के इस शून्य सदन में।

उजड़े घर, निर्जन खँडहर में
कंचन-थाल लिये निज कर में
रूप-आरती सजा खड़ी किस सुन्दर के स्वागत-चिन्तन में?
जीवन के इस शून्य सदन में।

सूखी-सी सरिता के तट पर
देवि! खड़ी सूने पनघट पर
अपने प्रिय-दर्शन अतीत की कविता बाँच रही हो मन में?
जीवन के इस शून्य सदन में।

नव यौवन की चिता बनाकर,
आशा-कलियों को स्वाहा कर
भग्न मनोरथ की समाधि पर तपस्विनी बैठी निर्जन में।
जीवन के इस शून्य सदन में।

By shayar

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *