(१)
वय की गभीरता से मिश्रित यौवन का आदर होता है,
वार्द्धक्य शोभता वह जिसमें जीवित हो जोश जवानी का।

(२)
जवानी का समय भी खूब होता है,
थिरकता जब उँगलियों पर गगन की आँख का सपना,
कि जब प्रत्येक नारी नायिका-सी भव्य लगती है,
कि जब प्रत्येक नर लगता हमें प्रेमी परम अपना।

By shayar

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *