तिमिर में स्वर के बाले दीप, आज फिर आता है कोई।
’हवा में कब तक ठहरी हुई
रहेगी जलती हुई मशाल?
थकी तेरी मुट्ठी यदि वीर,
सकेगा इसको कौन सँभाल?’
अनल-गिरि पर से मुझे पुकार, राग यह गाता है कोई।
हलाहल का दुर्जय विस्फोट,
भरा अंगारों से तूफान,
दहकता-जलता हुआ खगोल,
कड़कता हुआ दीप्त अभिमान।
निकट ही कहीं प्रलय का स्वप्न, मुझे दिखलाता है कोई।
सुलगती नहीं यज्ञ की आग,
दिशा धूमिल, यजमान अधीर;
पुरोधा-कवि कोई है यहाँ?
देश को दे ज्वाला के तीर।
धुओं में किसी वह्नि का आज निमन्त्रण लाता है कोई।